अपने बिज़नेस को बढ़ाने या आवश्यक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए लोन की आवश्यकता होती है। लेकिन लंबे समय में बिज़नेस ग्रोथ और फाइनेंशियल हेल्थ के लिए सही बिज़नेस लोन चुनना ज़रूरी है। हालांकि, कोई भी लोन लेने से पहले यह समझना आवश्यक है कि कौन-सा बिज़नेस लोन आपके लिए सही रहेगा। इसलिए सही बिज़नेस लोन का चुनाव करते समय आवेदक को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिनकी जानकारी इस लेख में दी गई है।
अपने बिज़नेस की फाइनेंशियल ज़रूरतों का आकलन करें
सबसे पहले यह समझें कि आपको लोन की ज़रूरत क्यों है। क्या आप अपने बिज़नेस को बढ़ाना चाहते हैं?, नई मशीनरी खरीदना चाहते हैं या फिर कैश फ्लो को मैनेज करने के लिए लोन चाहते हैं।
उदाहरण के लिए, अगर आप अपने व्यवसाय का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं, तो बिज़नेस की प्रकृति के अनुसार उससे प्रॉफिट मिलने में लगने वाला समय (Gestation Period) अलग-अलग हो सकता है। ऐसे व्यवसाय जिनमें प्रॉफिट मिलने में अधिक समय लगता है, उनके लिए ऐसी लोन स्कीम जो लंबी अवधि, आसान भुगतान विकल्प और कम ब्याज दरों के साथ आते हैं, उपयुक्त रहेंगे। वहीं अगर आपकी पूंजी का एक बड़ा हिस्सा स्टॉक, इन्वेंट्री या कच्चा माल खरीदने या शॉर्ट-टर्म कैश फ्लो की ज़रूरतों को पूरा करने में जाता है, तो कैश क्रेडिट, ओवरड्राफ्ट, बिल डिस्काउंटिंग जैसे वर्किंग कैपिटल लोन लेना ज़्यादा बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।
अगर आपको अपने बिज़नेस की मौजूदा या आने वाले समय की फाइनेंशियल स्थिति की सही समझ है, तो आपको अपनी लोन संबंधित आवश्यकताओं का बेहतर मूल्यांकन करने में मदद मिलेगी।
बिज़नेस लोन के विभिन्न प्रकारों को समझें
हर व्यवसाय और उसकी वित्तीय ज़रूरतें अलग-अलग होती हैं। बैंक इन विभिन्न ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कई तरह के बिज़नेस लोन ऑफर करते हैं, जैसे-
- टर्म लोन
- ओवरड्राफ्ट सुविधा
- प्रोफेशनल लोन
- बिल डिस्काउंटिंग
- मशीनरी फाइनेंस
- परचेज फाइनेंसिंग
- वर्किंग कैपिटल लोन
- बैंक गारंटी
- लेटर ऑफ क्रेडिट
- मर्चेंट कैश एडवांस आदि।
इनके अलावा, आप प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, स्टैंड अप इंडिया जैसी सरकारी योजनाओं का भी लाभ उठा सकते हैं। लेकिन कोई भी विकल्प चुनने से पहले यह जानें कि वह योजना क्या है, कैसे काम करती है और क्या वह आपकी फाइनेंशियल/ऑपरेशनल ज़रूरतों को पूरा कर सकती है।
कोलेटरल (सिक्योरिटी) की जरूरत को समझें
बिज़नेस लोन देते समय लोन संस्थान अपने जोखिम को कम करने के लिए कोलैटरल मांगते हैं। कोलैटरल बैंको के लिए गारंटी के रूप में काम करता है जिससे लोन डिफॉल्ट होने पर बैंक अपनी बकाया राशि की भरपाई कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए:
- एक मैन्यूफैक्चरिंग बिज़नेस अपने पूंजीगत व्यय (Capital expenditure) के लिए अपनी इंडस्ट्रियल प्रॉपर्टी या मशीनरी को गिरवी रखकर लोन ले सकता है।
- ऐसे सप्लायर जिन्हें वर्किंग कैपिटल और लिक्विडिटी की ज़रूरत है, वे अपने क्लाइंट से मिलने वाले इनवॉइस के बदले बिल डिस्काउंटिंग की सुविधा ले सकते हैं।
इसलिए, लोन लेने से पहले यह देखें कि क्या आपके पास गिरवी रखने योग्य एसेट है या नहीं। साथ ही, उन्हें गिरवी रखने से जुड़े जोखिमों को भी समझें। वैसे तो अनसिक्योर्ड बिज़नेस लोन के विकल्प भी मिलते हैं, लेकिन आमतौर पर उनकी ब्याज दरें ज़्यादा और लोन राशि कम होती है।
ब्याज दर और अन्य फीस व चार्ज़ेस की तुलना करें
बिज़नेस लोन चुनते समय सिर्फ ब्याज दर ही नहीं, बल्कि अन्य शुल्क जैसे प्रोसेसिंग फीस, प्री-पेमेंट चार्ज और कमिटमेंट फीस (अगर कोई हो) की भी तुलना करें।
बिज़नेस लोन की ब्याज दरें ही आपके कुल लोन लागत को तय करती है, इसलिए सबसे कम ब्याज दर वाला लोन चुनना बेहतर होता है। इसके लिए:
- पहले उन बैंकों के ऑफर देखें, जहां आपने डिपॉज़िट किए हैं या लोन लिया है।
- फिर ऑनलाइन फाइनेंशियल मार्केटप्लेस जैसे- पैसाबाज़ार पर जाकर विभिन्न बैंक/NBFC के ऑफर्स की तुलना करें।
- इसके अलावा, फीस और चार्ज़ेस का भी ध्यान रखें क्योंकि यह आपके लोन की कुल लागत को प्रभावित करते हैं।