कुमुलेटिव फिक्स्ड डिपॉज़िट क्या है?
कुमुलेटिव एफडी में मूल राशि पर आपको जो ब्याज़ मिलता है, उसे हर साल कंपाउंड किया जाता है। मतलब की हर साल एफडी पर लागू ब्याज दर केवल आपकी मूल एफडी राशि पर लागू नहीं होगी बल्कि आपकी एफडी पर जो ब्याज अब तक मिलता है उस पर भी ब्याज दर लागू होगी| उदाहरण के तौर पर, आपने 1,00,000 रु. की एफडी की 7% की ब्याज दर पर पांच साल के लिए, तो पहले साल में ब्याज दर 1,00,000 रु. पर लागू होगी और दूसरे साल में 107,000 रु. पर| इससे आपकी मूल राशि में बढ़ोतरी होती है। जब एफडी की अवधि पूरी हो जाती है या आपकी एफडी मैच्योर हो जाती है तो आपको मूल राशि के साथ ब्याज़ का भुगतान किया जाता है।
कुमुलेटिव FD में किसे निवेश करना चाहिए?
इस प्रकार की एफडी उन लोगों के लिए बढ़िया विकल्प साबित हो सकती है जिन्हें नियमित आय की ज़रूरत नहीं है और वे लंबी अवधि के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए निवेश करना चाहते हैं। कुमुलेटिव एफडी उन्हें लेना चाहिए जो भविष्य में एक निश्चित राशि बचाना चाहते हैं।
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नॉन–कुमुलेटिव FD क्या है?
नॉन–कुमुलेटिव FD में आप अपनी आवश्यकता के मुताबिक मासिक, क्वाटरली (तीन महीने में), अर्ध–वार्षिक या वार्षिक आधार पर ब्याज़ प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह की एफडी में कुमुलेटिव एफडी की तुलना में कम ब्याज़ दिया जाता है, क्योंकि इसमें ब्याज़ कुमुलेटिव एफडी की तरह कंपाउंड नहीं होता।
नॉन–कुमुलेटिव FD में किसे निवेश करना चाहिए?
नॉन–कुमुलेटिव एफडी में वे लोग निवेश कर सकते हैं जिन्हें नियमित आय की ज़रूरत होती है जैसे रिटायर्ड व्यक्ति, फ्रीलांसर और हाउस वाइफ।
कुमुलेटिव व नॉन–कुमुलेटिव एफडी की तुलना
आइए जानते हैं इन दोनों के बीच प्रमुख अंतर क्या हैं–
कुमुलेटिव FD | नॉन–कुमुलेटिव FD | |
परिभाषा | ब्याज पूरी FD अवधि के लिए जमा रहती है | ब्याज़ जमा नहीं होता |
ब्याज़ का भुगतान | मैच्योरिटी पर | मासिक, त्रैमासिक(तीन महीने में), अर्ध–वार्षिक या वार्षिक आधार पर |
इनकम फ्लो | एफडी की अवधि पूरी होने तक कोई इनकम नहीं | एफडी की अवधि के दौरान रेगुलर इनकम |
री–इंवेस्टेमेंट |
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किसके लिए उपयुक्त | नौकरीपेशा व्यक्ति और लंबी अवधि के लिए निवेश करना चाहते हैं | रिटायर्ड लोग, हाउस वाइफ और फ्रीलांसर |
FD पर अधिक ब्याज़ कैसे प्राप्त करें?
कुमुलेटिव एफडी में अधिक ब्याज़ मिलता है। साथ ही इसमें नियमित रूप से ब्याज़ दिया जाता है। जैसे–जैसे ब्याज़ मूल राशि में जमा होता जाता है, वैसे–वैसे इन दोनों पर ब्याज़ मिलता जाता है। यानी कंपाउंडिंग की वजह से ब्याज़ पर ब्याज़ दिया जाता है और रिटर्न बढ़ता जाता है। यह तब तक चलता है जब तक कि एफडी की अवधि खत्म नहीं हो जाती। ऐसे में आप कुमुलेटिल एफडी खुलवाकर अधिक ब्याज़ प्राप्त कर सकते हैं।