फिक्स्ड डिपॉज़िट स्वीप-इन क्यों?
अधिक रिटर्न अर्जित करना कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता है और यह स्वीप-इन सुविधा को सक्षम करने का प्रमुख बिन्दु है। लिंक किये गए फिक्स डिपॉज़िट खाते में ट्रांसफर होने वाली राशि अधिक ब्याज अर्जित करेगी क्योंकि फिक्स डिपॉज़िट ब्याज दरें बचत खाते की ब्याज दरों से अधिक होती हैं।
इसके अलावा, स्वीप-इन सुविधा का लाभ उठाने से खाताधारक को फंड की समस्या नहीं आती है क्योंकि यह लिमिट खाताधारक द्वारा तय की जाती है। इसलिए, वे इसे अपनी सामर्थ्य के अनुसार निर्धारित कर सकते हैं। अगर किसी को मासिक खर्च के लिए 20,000 रूपए की ज़रूरत है तो वे 20000 रुपये की लिमिट निर्धारित कर सकते हैं। तो ऐसे में उसके सेविंग अकाउंट में जब 20,000 रुपए से अधिक राशि होगी तो वो लिंक किए गए फिक्स डिपॉज़िट खाते में जाएगी।
कैसे प्राप्त करें स्वीप-इन सुविधा?
इस अत्यधिक लाभदायक सुविधा का उपयोग करने के लिए, निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं को ध्यान में रखना होगा:
- सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी के बचत खाते को फिक्स डिपॉज़िट खाते के साथ लिंक करना चाहिए
- खाता धारक को एक लिमिट तय करने की आवश्यकता होगी, जिससे बचत खाते में कोई भी अतिरिक्त राशि लिंक किए गए फिक्स डिपॉज़िट खाते में ट्रांसफर हो जाएगी
- बैंक के इंटरनेट बैंकिंग विकल्प से आवेदन करना सबसे आसान तरीका है
- शाखा में जाकर ऑफलाइन भी किया जा सकता है
- खाताधारक बैंक द्वारा प्रदान किए गए किसी भी विशिष्ट FD अवधि का विकल्प चुन सकता है
स्वीप-इन फैसिलिटी कैसे काम करती है?
आसानी से समझने के लिए, कृपया निम्न उदाहरण देखें:
सुश्री अदिति ने हाल ही में अपने बचत खाते को 1 वर्ष की अवधि के लिए फिक्स डिपॉज़िट खाते से लिंक किया है। उसने स्वीप-इन सुविधा का विकल्प चुना है और 40000 रु. की लिमिट को चुना है। अब उसके बचत खाते में जब भी 40,000 रु. से ज़्यादा राशि होगी तो वो अतिरिक्त राशि फिक्स डिपॉज़िट खाते में ट्रांसफर हो जाएगी।
उसके खाते में वर्तमान बैलेंस 25,000 रू. है। उसके खाते में अब 30,000 रू. उसकी सैलरी के रूप में या किसी अन्य स्रोत से आते हैं। अब, उसका बैंक बैलेंस 55,000 रु. है जो कि उसकी लिमिट से 15,000 रू. अधिक है। इसलिए, बैंक स्वतः ही 15,000 रु. ट्रांसफऱ कर देता है।
स्वीप-आउट सुविधा क्या है?
आम शब्दों में समझाने के लिए, स्वीप-आउट स्वीप-इन के बिल्कुल विपरीत है। इसका मतलब यह है कि यदि सेविंग अकाउंट में कोई कमी है, तो कमी को पूरा करने के लिए घाटे की राशि को लिंक्ड फिक्स्ड डिपॉज़िट अकाउंट से सेविंग अकाउंट में ट्रांसफर कर दिया जाता है। इसका उपयोग सेविंग अकाउंट में मिनिमम अमाउंट से कम बैलेंस हो जाने पर हो सकता है।
हालांकि, HDFC बैंक जैसे कुछ बैंक इस सुविधा को स्वीप-इन कहते हैं। इस प्रकार, उन विशेषताओं का ठीक से विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है जो बैंक ऑफर करते हैं।
स्वीप-इन सुविधा और फ्लेक्सी डिपॉज़िट के बीच अंतर
स्वीप-इन और फ्लेक्सी डिपॉज़िट की दोनों सुविधाएं अधिक ब्याज दरों का समान लाभ प्रदान करती हैं। जहां स्वीप-इन सुविधा फिक्स्ड डिपॉज़िट स्कीमों के लिए एक अतिरिक्त सुविधा है, फ्लेक्सी-डिपॉज़िट अपने आप में एक अलग स्कीम है।
फ्लेक्सी-डिपॉज़िट में, ग्राहक को अपने डिपॉज़िट खाते में मैन्युअल रूप से पैसा जमा करने की आवश्यकता होती है। साथ ही, जमाकर्ता FD अकाउंट मैच्योरिटी से पहले कभी भी खाते से राशि निकाल सकता है। इस प्रकार, उच्च रिटर्न, साथ ही प्री-मैच्योर विड्रॉल दोनों लाभ मिलते हैं।