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हमारे अपने घर का मालिक होना हममें से अधिकांश के लिए एक सपना है। हालांकि, देश भर में प्रॉपर्टी की कीमतें आसमान छू रही हैं, जिसकी वजह से घर खरीदना मुश्किल हो गया है, खासकर जीवन के शुरुआती दिनों में। एक घर की खरीद में न केवल सही घर ढूंढना ही नहीं, बल्कि आपके होम लोन आवेदन का मंज़ूर होना भी शामिल है। और यह सुनिश्चित करने की इस पूरी प्रक्रिया के दौरान कि हमारे पास पर्याप्त राशि है, हम अक्सर स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन शुल्क के खर्च को नज़र अंदाज कर देते हैं, जिससे हमारी आर्थिक योजना में गड़बड़ हो जाती है। ये शुल्क अक्सर लागू स्थानीय दरों के आधार पर एक नगरपालिका क्षेत्र से दूसरे में अलग अलग होते हैं। इस लेख में हम इन शुल्क व स्टाम्प ड्यूटी के बारें में अधिक जानकारी प्राप्त करेंगे।
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स्टांप ड्यूटी किसी भी तरह के ट्रांजैक्शन पर लगाया जाने वाला टैक्स है। इनमें एक एग्रीमेंट, सेल्स एग्रीमेंट, पावर ऑफ अटॉर्नी आदि शामिल हो सकते हैं। तकनीकी रूप से, यह एक ऐसा टैक्स है जो किसी भी दस्तावेज़ को प्राप्त करने के लिए भुगतान किया जाता है जो किसी भी सृजन या दायित्व को बनाने, ट्रांसफर करने, सीमित करने, विस्तार करने, रिकॉर्ड करने की सुविधा प्रदान करता है। वर्ष 1899 में भारतीय स्टाम्प अधिनियम के पास होने के बाद स्टैम्प ड्यूटी अस्तित्व में आई है। स्टैंप ड्यूटी के भुगतान के बाद, ये दस्तावेज़ कानूनी रूप से वैध हो जाते हैं, और अदालत में यह दस्तावेज़ मान्य दस्तावेज़ होते हैं।
स्टांप ड्यूटी की कैल्कुलेशन प्रॉपर्टी के मूल्य पर आधारित होती है। इस को लेकर प्रत्येक भारतीय राज्य के अपने नियम हैं जिनके आधार पर इसको कैल्कुलेट किया जाता है। इसका भुगतान आम तौर पर राज्य सरकार द्वारा निर्धारित सर्कल रेट के आधार पर किया जाता है। स्टांप ड्यूटी प्रॉपर्टी के प्रकार यानी आवासीय या कॉमर्शियल, साथ ही साथ शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के आधार पर भी अलग अलग होती है।
ऐसे तीन तरीके हैं, जिसमें आप अपने पास मौजूद नई प्रापर्टी के लिए स्टांप ड्यूटी दे सकते हैं। आप गैर-न्यायिक स्टांप पेपर, ई-स्टांपिंग या फ्रैंकिंग के माध्यम से भुगतान पर विचार कर सकते हैं, आप किसी फ्रेंकिंग एजेंसी या किसी बैंक के माध्यम से शुल्क का भुगतान कर सकते हैं जो इस तरह के भुगतान को स्वीकार करने के लिए अधिकृत है। हालांकि, फ्रैन्किंग में उस राज्य के आधार पर कुछ अतिरिक्त शुल्क भी शामिल होते हैं, जिसमें आप प्रॉपर्टी खरीद रहे हैं। नीचे दी गई लिस्ट में स्टांप शुल्क की कुछ दरें दर्शाई गई हैं, जो भारत भर के प्रमुख राज्यों में प्रचलित हैं।
ये भी पढ़ें: तोहफे में दी गई प्रॉपर्टी पर लागू स्टैम्प ड्यूटी के बारे में जानें
| दिल्ली | उत्तर प्रदेश | आंध्रप्रदेश | तमिलनाडु | मध्यप्रदेश | पंजाब | पश्चिम बंगाल | असम | |
| पुरुष | 6% | 8% | 3% | 6% | 0.50% | 8% | 6% | 1% |
| महिला | 4% | 8% | 3% | 6% | 0.50% | 7% | 6% | 1% |
| संयुक्त | 5% | 8% | 3% | 6% | 0.50% | 8% | 6% | 1% |
| वरिष्ठ नागरिक | 6% | 8% | 3% | 6% | 0.50% | 8% | 6% | 1% |
| कंपनी | 6% | 8% | 3% | 6% | 0.50% | 8% | 6% | 1% |
* ऊपर बताई गई दरें सांकेतिक हैं जो कि समय-समय पर बदल सकती हैं।
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स्टांप ड्यूटी के भुगतान को पूरा करने के बाद, दस्तावेज़ को रजिस्टर कराना होता है। जिस जगह पर प्रॉपर्टी स्तिथ है, वहाँ के सब-रजिस्ट्रार की सहायता से रजिस्ट्रेशन किया जाता है। यह प्रक्रिया वर्ष 1908 के भारतीय पंजीकरण अधिनियम द्वारा विस्तार से परिभाषित की गई है। यह दस्तावेज़ के उचित निष्पादन को रिकॉर्ड करने के लिए किया जाता है ताकि आपको नई संपत्ति का कानूनी स्वामित्व (ऑनरशिप) मिल जाए।
प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन के लिए स्टांप शुल्क की जानकारी ऊपर दी गुई है। रजिस्ट्रेशन शुल्क उन प्रॉपर्टी के मामले में लागू होता है जिनकी कीमत 30,000 रु. से अधिक होती है। इस शुल्क का कैल्कुलेशन आमतौर पर एग्रीमेंट के मूल्य या बाज़ार मूल्य के 1% पर की जाती है, जो भी कम हो।
दस्तावेज़ों के रजिस्ट्रेशन में दस्तावेज़ों की गहन जांच की जाती है और यह एक विस्तृत प्रक्रिया है। रजिस्ट्रेशन के समय आवश्यक कुछ प्रमुख दस्तावेज़ निम्नलिखित हैं-
उपरोक्त सभी प्रक्रियाओं के बाद, आपको एक यूनीक सीरियल नंबर के साथ एक रसीद दी जाएगी, जो रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया के सफल हो जाने को प्रदर्शित करता है।
एक प्रॉपर्टी में खरीदार के हिस्से में पर्याप्त निवेश शामिल होता है, इसलिए खरीदारी का निर्णय लेने से पहले खरीद और रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया की बारीकियों को जानना महत्वपूर्ण है।
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