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डेट- टू- इनकम रेश्यो
आप अपनी मासिक आय का जितना प्रतिशत हर महीने ईएमआई या कर्ज़ के भुगतान में खर्च करते हैं वही आपका डेट-टू-इनकम रेश्यो होता है। आपके लोन आवेदन पर विचार करते समय बैंक/ लोन संस्थान इस रेश्यो के ज़रिए मूल्यांकन करते हैं कि आवेदक अपनी मौज़ूदा आर्थिक स्थिति के मुताबिक कितना कर्ज़ ले सकता है। ये रेश्यो जितना कम होगा, आपके आवेदन के मंज़ूर होने की संभावना उतनी ज़्यादा होगी।
इनकम्ब्रेंस सर्टिफिकेट
अगर आप कोई हाउसिंग प्रॉपर्टी खरीदने की योजना बना रहे हैं तो आपके पास उसका इनकम्ब्रेंस सर्टिफिकेट होना चाहिए। यह बहुत ज़रूरी दस्तावेज होता है जिससे पता चलता है कि हाल ही में प्रॉपर्टी का मालिक कौन है, पिछले 15- 20 सालों में पहले क्या- क्या ट्रांजेक्शन हुई हैं। इसके साथ ये भी पता चलता है कि उस प्रॉपर्टी के ऊपर कोई लोन या थर्ड पार्टी का क्लेम या चार्ज है या नहीं है। होम लोन या लोन अगेंस्ट प्रॉपर्टी के मामले में बैंक आपसे ये दस्तावेज मांग सकते हैं।
दस्तावेज में शामिल जानकारी-
1. मालिकाना हक – प्रॉपर्टी का मालिक कौन है
2. ट्रांजेक्शन हिस्ट्री – 30 साल, न्यूनतम – 15- 20 साल
3. क्लीयर टाइटल – प्रॉपर्टी पर आपके अलावा किसी और का मालिकाना हक नहीं होना चाहिए
4. अन्य क्लेम हैं या नहीं – मॉर्गेज, लीज़, अन्य थर्ड पार्टी क्लेम
5. धोखाधड़ी से संबंधित जानकारी
आप इस दस्तावेज को ऑनलाइन या सब- रजिस्ट्रार के ऑफिस जाकर भी आवेदन के 15- 30 दिनों के अंदर प्राप्त कर सकते हैं।
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लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप
अगर आप अपना बिज़नेस या स्टार्टअप खोलना चाहते हैं तो सबसे पहला सवाल जो सबके सामने आता है, वो ये कि किस टाइप की कंपनी खोलें। यह कंपनी प्रोपराइटरशिप हो सकती है, पार्टनरशिप फर्म हो सकती है या फिर लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप या प्राइवेट लिमिटेड भी हो सकती है।
बता दें कि अगर आप अकेले ही कंपनी खोलना चाहती हैं तो प्रोपराइटरशिप फर्म के लिए रजिस्ट्रेशन करना होगा। दो या दो से अधिक लोग मिलकर कंपनी या बिज़नेस शुरू करना चाहते हैं तो आपके पास तीन चॉइस होती हैं- पार्टनरशिप फर्म, लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप और प्राइवेट लिमिटेड। एलएलपी फर्म शुरू करने के लिए कम से कम- 2 पार्टनर होना ज़रूरी है। इसके तहत विदेशी पार्टनर को भी अनुमति दी जाती है। इस तरह की फर्म में शेयरहोल्डिंग के हिसाब से हर पार्टनर की ज़िम्मेदारी होती है। एक Limited Liablity Partnership में एक पार्टनर किसी अन्य पार्टनर के दुर्व्यवहार या लापरवाही के लिए ज़िम्मेदार नहीं होता है। इसके साथ ही अगर किसी पार्टनर की मृत्यु हो जाती है या किसी वजह से वो पार्टनर नहीं रहता है तो कंपनी बंद नहीं होती है। इस तरह की फर्म के अंत में एलएलपी लिखा रहता है। एलएलपी को भी आरओसी के पास रजिस्टर कराना होता है। हालांकि, रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया बहुत आसान होती है और इसमें खर्च भी बहुत कम आता है।
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स्टैंडिंग इंस्ट्रक्शन
मानकर चलिए कि अगर आपको हर महीने कुछ निश्चित राशि का भुगतान करना ही है, उदाहरण के लिए- अगर आपको ईएमआई भरनी है या म्युचुअल फंड में निवेश करना है या यूटिलिटी बिल का भुगतान करना हो, लेकिन आप चाहते हैं कि आपको हर महीने इन भुगतान की चिंता न करनी पड़े। इसके लिए एक तरीका है, स्टैंडिंग इंस्ट्रक्शन। इसके ज़रिए आपके बैंक अकाउंट से हर महीने एक निश्चित राशि का भुगतान ऑटोमेटिक रूप से हो जाता है।
इसके अलावा अगर आपके सेविंग और पीपीएफ अकाउंट एक ही बैंक में हैं और आप चाहते हैं कि सेविंग अकाउंट से पैसा कटकर स्वत: ही पीपीएफ अकाउंट में जमा हो जाए, तो इस प्रकिया का इस्तेमाल किया जा सकता है। आप चाहें तो हर महीने या हर दिन, अपनी सहूलियत के हिसाब से पीपीएफ अकाउंट में पैसा जमा करा सकते हैं। हालांकि, किसी एक वित्त वर्ष में पीपीएफ खाते में अधिकतम 1.5 लाख रुपये ही जमा कराए जा सकते हैं। स्टैंडिंग इंस्ट्रक्शन के ज़रिए आपके सेविंग/करेंट अकाउंट से पैसा कटकर अपने आप पीपीएफ अकाउंट में जमा हो जाएगा।
प्राइम सिक्योरिटी और कोलैटरल सिक्योरिटी में अंतर
प्राइम सिक्योरिटी- मान लीजिए कि आप कोई घर खरीदना चाहते हैं जिसकी कीमत 1 करोड़ रु. है, लेकिन आपके पास इसका भुगतान करने के लिए केवल 20 लाख रु. हैं और आप 80 लाख रु. का लोन लेना चाहते हैं। बैंक आपको 80 लाख रु. का लोन देने के लिए तैयार है लेकिन उसकी शर्त है कि आपको लोन का भुगतान करने तक अपना घर सिक्योरिटी के रूप में जमा कराना होगा। यानी कि घर के टाइटल एग्रीमेंट जैसे दस्तावेज बैंक के पास ही रहेंगे। यह प्राइम सिक्योरिटी होती है, यानी कि जो एसेट आपने खरीदा, उसे ही बैंक के पास गिरवी रख दिया।
कोलैटरल सिक्योरिटी- वहीं मानकर चलिए कि आपको अपने बिज़नेस के लिए कोई मशीनरी खरीदनी है जिसकी कीमत 50 लाख रु. है। बैंक 50 लाख रु. तक का लोन दे देता है लेकिन इसके बदले 1 करोड़ रु. की सिक्योरिटी जमा करने को कहता है। इस केस में बैंक प्राइम सिक्योरिटी के रूप में मशीनरी को रखता है जिसकी कीमत 50 लाख रु. है और जिसके लिए आपने लोन लिया है। अतिरिक्त 50 लाख रु. के लिए आपको अतिरिक्त सिक्योरिटी जमा करनी होगी जिसे सेकेंडरी या कोलैटरल सिक्योरिटी कहा जाता है।
सिक्योरिटी के रूप में क्या जमा किया जा सकता है
- अचल संपत्ति (घर, फ्लैट, जमीन आदि)
- गोल्ड
- फाइनेंशियल सिक्योरिटी – एफडी, म्युचुअल फंड, स्टॉक, बॉन्ड
- पर्सनल गारंटी
- प्लांट और मशीनरी
- इन्वेंट्री, आदि।
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