एक निश्चित समयसीमा में धन कमाने के लिए म्यूचुअल फंड में निवेश करना अच्छा विकल्प हो सकता है। चाहे निवेशक एकमुश्त लाभ की तलाश में हों या लगातार आय की तलाश में हों, वे कई म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं।
म्यूचुअल फंड विभिन्न प्रकार के हैं, जैसे इक्विटी फंड, हाइब्रिड फंड, इंडेक्स फंड, टैक्स-सेविंग फंड, डेट फंड, मनी मार्केट फंड, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETFs), आदि। निवेशक समय सीमा और जोखिम लेने की क्षमता के आधार पर म्यूचुअल फंड स्कीम चुन सकते हैं, जिससे निवेशक को अपना लक्ष्य पाने में मदद मिलेगी।
निवेश की समयसीमा एक महत्वपूर्ण कारक है, इससे निवेशक को उचित म्यूचुअल फंड स्कीम चुनने में मदद मिल सकती है। लॉन्ग-टर्म निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड निवेश अनुकूल है। हालांकि, शॉर्ट-टर्म वाले निवेशक म्यूचुअल फंड के ज़रिए अच्छे रिटर्न/ लाभ कमा सकते हैं।
म्यूचुअल फ़ंड में शॉर्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म के लिए निवेश:-
अधिकांश एक्सपर्ट के अनुसार, शॉर्ट-टर्म निवेश में 1 साल से 3 साल तक निवेश किया जाता है, जबकि 5 वर्ष से अधिक समय के लिए किए गए किसी भी निवेश को लॉन्ग-टर्म निवेश कहते हैं। हालांकि, डेटा से पता चलता है कि म्यूचुअल फंड में लंबे समय तक निवेश किया जाना निवेशक के लिए फायदेमंद है, क्योंकि निवेशक को कंपाउंडिंग का लाभ मिल सकता है। निश्चित रूप से, कंपाउंडिंग उस स्थिति में अनुकूल है, जब कोई व्यक्ति लंबे समय के लिए निवेश करता है।
ऐसा इसलिए कहा गया है कि कई म्यूचुअल फंड का ऑफर होने से निवेशकों के पास शॉर्ट-टर्म निवेश का लाभ लेने का विकल्प भी है। म्यूचुअल फंड निवेश की सफलता में फंड चुनने की प्रक्रिया की महत्वपूर्ण भूमिका है, विशेषकर शॉर्ट-टर्म निवेश करने वाले निवेशकों के लिए फंड चुनने की प्रक्रिया और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
शॉर्ट-टर्म निवेश के लिए म्यूचुअल फंड:-
यदि आप शॉर्ट-टर्म के लिए निवेश कर रहे हैं, जो एक सप्ताह से एक वर्ष तक की समयसीमा तक हो सकता है, तो कुछ टॉप विकल्पों में लिक्विड फंड और अल्ट्रा-शोर्ट टर्म के डेट फंड शामिल हैं। ये दोनों अच्छा रिटर्न/ लाभ देते हैं, जो वर्तमान में 3.5% से 4% ब्याज देने वाले सेविंग अकाउंट से काफी अधिक हैं।
अल्ट्रा शॉर्ट-टर्म म्यूचुअल फंड के मामले में भले ही आप कुछ समय के लिए निवेश कर रहे हों, लेकिन बैंक फिकस्ड डिपोज़िट के रिटर्न/ लाभ से ज़्यादा होने की संभावना होती है। इन डेट फंडों में एक विशिष्ट क्षमता होती है, जो कि उनके द्वारा किये गए निव्सश के करा होती है इसलिए ये FD से बेहतर रिटर्न लाभ देते हैं|
हालांकि, किसी भी अन्य म्यूचुअल फंड निवेश की तरह इनमे बाज़ार जोखिम भी होता है इसलिए इसमें रिटर्न/ लाभ की गारंटी नहीं है। यदि आप 3 वर्ष के समय के लिए निवेश कर रहे हैं, तो शॉर्ट-टर्म फंड और क्रेडिट अपौरचुनिटी फंड जैसे डेट फंड बेहतर विकल्प हो सकते हैं, क्योंकि ये मध्यम समय में अधिक रिटर्न/ लाभ देने में सक्षम हैं।
लॉन्ग-टर्म निवेश के लिए म्यूचुअल फंड:-
यदि आप लंबे समय के लिए निवेश और रिटायरमेंट की प्लानिंग कर रहे हैं तो आपके लिए लॉन्ग-टर्म निवेश सही विकल्प है इसमें पांच साल या इससे ज्यादा समय के लिए निवेश कर सकते हैं। इसमें आप इक्विटी फंड लार्ज कैप फंड, विविध इक्विटी फंड और इक्विटी-लिंक्ड सेविंग स्कीम(ELSS) में निवेश कर सकते हैं।
लॉन्ग-टर्म इक्विटी निवेश की स्थिति में दोगुना लाभ होता है। सबसे पहले, एक वर्ष से अधिक के निवेश की स्थिति में कोई टैक्स नहीं है और दूसरी बात यह है कि कंपाउंडिंग आपके पक्ष में काम करती है। इक्विटी फंड निवेश का डेटा बताता है कि लॉन्ग-टर्म के लिए इक्विटी में निवेश करने वालों के पास शॉर्ट-टर्म इक्विटी निवेश की तुलना में अधिक मुनाफा कमाने का एक बड़ा मौका होता है।
हालांकि, यह भी बताना जरुरी है कि आपके इक्विटी निवेश का मूल्य उसी समय में उसी दर से ऊपर नहीं जाएगा, जब आप योजना में निवेश करते हैं। कुछ सालों में 20% से ज़्यादा वार्षिक रिटर्न/ लाभ मिल सकता है, जबकि अन्य सालों के दौरान इस योजना में 10% या उससे कम वार्षिक रिटर्न/ लाभ मिल सकता है।
शॉर्ट-टर्म और लॉग टर्म के लिए निवेश के टैक्स नियम:-
टैक्स नियम के नज़रिए से शॉर्ट-टर्म और लॉन्ग- टर्म की परिभाषा इस बात पर निर्भर करती है कि आपने इक्विटी म्यूचुअल फंड और डेट म्यूचुअल फंड दोनों में से किस फंड में निवेश किया है। मौजूदा नियमों के अनुसार, इक्विटी फंड में शॉर्ट-टर्म निवेश 1 वर्ष या इससे कम समय के लिए होता है, जिसकी गणना यूनिट खरीदने की तारीख से की जाती है।
इसलिए, यदि आपने यूनिट खरीदने की तारीख से 1 वर्ष से ज़्यादा समय के लिए इक्विटी फंड में निवेश किया है, तो ये फंड लॉन्ग-टर्म के निवेश माने जाएंगे। वहीं यदि आप यूनिट बांटने की तारीख से 1 वर्ष पूरा होने से पहले अपना म्यूचुअल फंड रिडीम या स्विच करते हैं, तो आपको शॉर्ट-टर्म कैपिटल लाभ के रूप में मुनाफे पर 15% टैक्स का भुगतान करना होगा।
मौजूदा समय में लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) अर्थात एक वर्ष से अधिक के लिए किए गए इक्विटी निवेश के लाभ पर 10% टैक्स, रिडीम किए/ बेचे गए यूनिट का शुद्ध लाभ 1 लाख रूपए से अधिक होने पर लिया जाएगा। हालांकि, अगर लॉन्ग-टर्म लाभ 1 लाख रूपए से कम होता है, तो ये टैक्स-फ्री लाभ माना जाता है।
गैर-इक्विटी निवेश जैसे डेट निवेश के मामले में शॉर्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म की परिभाषा पूरी तरह से अलग है। डेट फंड के लिए, शॉर्ट-टर्म का मतलब उन निवेशों से है, जो 3 वर्ष या इससे कम समय के लिए किए गए थे। यदि फण्ड यूनिट खरीदने की तारीख से 3 वर्ष से अधिक समय के लिए निवेश अपने पास रखे हैं, तो लॉन्ग-टर्म पूंजी लाभ नियम लागू होते हैं।
डेट फंड पर शार्ट टर्म में हुए लाभ पर निवेशक पर लागू आयकर स्लैब के अनुसार टैक्स लगाया जाता है। इन लाभों को अन्य स्रोतों से इनकम के रूप में गिना जाता है। निवेशक का वार्षिक टैक्स योग्य आय में जोड़ा जाता हैं और बाद में लागू स्लैब दर के अनुसार टैक्स लगाया जाता है।
जबकि गैर-इक्विटी निवेश से लॉन्ग-टर्म में हुए लाभ पर अलग तरीकों से टैक्स लगाया जाता है। यदि इंडेक्स लाभ उपयोग किए गए हैं, तो लॉन्ग-टर्म डेट निवेश के मुनाफों पर 20% की दर से टैक्स लगाया जाता है लेकिन ये तब होता है जब उस दौरान बढ़ी महंगाई का प्रभाव आप पर ना पड़ा हो अन्यथा 10% टैक्स लगता है|
हमारा विश्लेषण:
म्यूचुअल फंड में आसानी से और कई तरह के निवेश के विकल्प की विशेषता इसे अलग बनाती है। इसमें आपके पास शॉर्ट-टर्म के साथ-साथ लॉन्ग-टर्म के लिए त निवेश करने का विकल्प मिलता है, और अधिकांश अन्य निवेश प्रोडक्ट की तुलना में ज़्यादा रिटर्न/ लाभ भी मिलता है।
इसके अलावा, सिस्टेमेटिक इंवेस्टमेंट प्लान (SIP) के ज़रिए न्यूनतम 500 रु. से निवेश किया जा सकता है| सभी को कार्य के लिए सही फण्ड चुनना होता है। कुल मिलाकर, म्यूचुअल फंड योजनाएं निश्चित रूप से भारतीय निवेशकों के लिए जीवन के हर चरण में श्रेष्ठ निवेश विकल्प हैं।