पैन या परमानेंट अकाउंट नंबर भारत में टैक्सपेयर के लिए जारी कि गई विशिष्ट पहचान न० है। किसी भी टैक्सपेयर द्वारा आयकर रिटर्न दाखिल करने के लिए पैन अनिवार्य है। टैक्सपेयर से संबंधित सभी टैक्स संबंधी जानकारी टैक्सपेयर को जारी पैन में दर्ज की जाती है। यह टैक्सपेयर या संस्थाओं को टैक्स देने के लिए जारी एक नंबर है; इसलिए, दो व्यक्तियों के पास एक ही पैन नहीं हो सकता है।
वर्ष 1972 से पहले, आयकर विभाग के मूल्यांकन में सामान्य जनरल इंडेक्स रजिस्टर नंबर (GIR नंबर) की पहचान की गई थी। यह न० अधिकारी द्वारा आकलन के लिए जारी किया गया था। इसमें मूल्यांकनकर्ता की जानकारी के साथ–साथ मूल्यांकन अधिकारी भी शामिल थे। GIR नंबर का आबंटन एक मैनुअल प्रणाली थी। केवल एक वार्ड के भीतर या किसी विशेष मूल्यांकन अधिकारी के तहत था। इसलिए देश स्तर परसभी के लिए एक अलग नंबर नहीं बन पा रहा था। इसमें गलतिया हुई और टैक्स कैलकुलेशन के दौरान गलत कल्कुलेशन की संभावना बढ़ गई।
इस मुद्दे को हल करने के लिए, वर्ष 1972 में परमानेंट अकाउंट नंबर शुरूआत हुई। शुरुआत में, यह स्वैच्छिक था; हालाँकि, पैन अलॉटमेंट आयकर अधिनियम, 1961 w.e.f के u / s 139 A को अनिवार्य कर दिया गया था। 1 अप्रैल, 1976. इससे पहले, पैन मैन्युअल रूप से दिया जाता था। नकल से बचने के लिए, बोर्ड द्वारा प्रत्येक आयकर आयुक्त को परमानेंट अकाउंट नंबर के ब्लॉक दिए किए गए। पैन वर्ष 1985 तक पैन न० मैन्युअली ही जारी किया गया।