सैलरी स्लिप या पे स्लिप (Salary Slip & Pay Slip) एक प्रकार का डॉक्युमेंट होता है जिसे एक एंप्लॉयर/ कंपनी हर महीने अपने कर्मचारियों को प्रदान करती है। इसमें किसी कर्मचारी की सैलरी और एक निश्चित अवधि के लिए की जाने वाली कटौतियों की विस्तृत जानकारी शामिल होती है। यह स्लिप या तो एक प्रिंटेड कॉपी के रूप में या ई-मेल के ज़रिए कर्मचारियों को भेजी जाती है। यहां यह ध्यान देना ज़रूरी है कि कंपनी/ संस्थान को कानूनी रूप से अपने कर्मचारियों को सैलरी पेमेंट के प्रमाण के रूप में समय-समय पर पे स्लिप जारी करना ज़रूरी है।
सैलरी स्लिप का महत्व
सैलरी स्लिप या पे स्लिप किसी कर्मचारी की इनकम का कानूनी प्रमाण होता है। साथ ही, सैलरी स्लिप इस बात का प्रमाण भी होता है कि आप नौकरी कर रहे हैं या आपने पहले नौकरी की हुई है। सैलरी स्लिप होने से इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने और लोन के लिए आवेदन करते समय मदद मिलती है। इसके साथ ही जब आप नई नौकरी के लिए अप्लाई करते हैं तो नए एंप्लॉयर/ नियोक्ता को अपनी वर्तमान सैलरी के प्रमाण के रूप में सैलरी स्लिप दिखा सकते हैं। सैलरी स्लिप और उसके घटकों के बारे में जानना बहुत ज़रूरी है:
1. अगली जॉब में प्रमाण के रूप में उपयोगी:
अगर आप नई कंपनी जॉइन करते हैं और वहां ज़्यादा सैलरी की मांग करते हैं तो अपनी वर्तमान सैलरी के वैध प्रमाण के रूप में आप नई कंपनी को अपनी सैलरी स्लिप दिखा सकते हैं।
2. टैक्स प्लानिंग:
सैलरी स्लिप और उनके घटकों के बारे में पता होने से कोई कर्मचारी टैक्स में छूट ले सकते हैं, जिससे वे अपने टैक्स की कुशलतापूर्वक योजना बना सकते हैं।
3. बेहतर समझ:
सैलर स्लिप में ईपीएफ और ईएसआई जैसे घटक होते हैं जिनमें हर कर्मचारी को निवेश करना ही होता है। अगर कोई कर्मचारी इन योजनाओं में निवेश नहीं करना चाहता है तो वह ऐसी योजनाओं में निवेश कर सकता है जिनमें अधिक रिटर्न मिलता हो।
सीटीसी और ग्रॉस सैलरी के बीच अंतर
सीटीसी और ग्रॉस सैलरी के बीच प्रमुख अंतर निम्नलिखित हैं:
कॉस्ट टू कंपनी (सीटीसी) | ग्रॉस सैलरी |
CTC वह कुल राशि होती है जो किसी कंपनी/ संस्थान द्वारा साल में किसी कर्मचारी पर खर्च की जाती है। सीटीसी में सैलरी, पेंशन, पीएफ योगदान और अलाउंस आदि शामिल हैं। यह वेरिएबल है और ऐसे कई कारकों पर निर्भर करती है जिससे नेट सैलरी प्रभावित होती है। | कॉस्ट टू कंपनी (सीटीसी) से ग्रेच्युटी और एंप्लॉयी प्रोविडेंट फंड (ईपीएफ) घटाकर जो राशि प्राप्त होती है, उसे ग्रॉस सैलरी कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, ग्रॉस सैलरी टैक्स या अन्य कटौती से पहले बची राशि होती है और इसमें बोनस, ओवरटाइम पे, हॉलिडे पे आदि शामिल होता है। |
आइए नीचे दिए गए उदाहरण के माध्यम से सीटीसी और नेट सैलरी के बीच के अंतर को समझते हैं।
मान लीजिए, मिस्टर X की CTC 5,50,000 रु. है। नीचे सीटीसी (कॉस्ट टू कंपनी) के बारे में नीचे बताया गया है:
- बेसिक सैलरी: 2,75,000 रु. (सैलरी की 50%)
- महंगाई भत्ता (DA): 82,500 रु. (बेसिक की 30%)
- एचआरए: 1,43,000 रु. (बेसिक का 40%+ डीए)
- सीए: 19,200 रुपये (प्रति माह 1,600 रुपये)
- स्पेशल अलाउंस: 8,700 रु. (परफॉर्मेंस के आधार पर)
- ईपीएफ योगदान: 21,600 रु.
ग्रॉस सैलरी टैक्स और अन्य कटौती से पहले की राशि होती है। हालाँकि, इसमें बोनस, ओवरटाइम आदि शामिल हैं। X की ग्रॉस सैलरी 5,50,000 रु. – 21,600 रु.
ग्रॉस सैलरी = 5,28,400 रु. है। इस राशि पर नेट पे का भुगतान किया जाता है।
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सैलरी स्लिप के घटक
सैलरी स्लिप या पेस्लिप में कंपनी का नाम, कर्मचारी का नाम, डेजिग्नेशन और एंप्लॉयी कोड जैसी बेसिक जानकारी शामिल होगी। घटक मुख्य रूप से दो कैटेगरी के अंतर्गत आते हैं: इनकम/कमाई और कटौती। सैलरी स्लिप के इनकम पार्ट और अन्य कटौतियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने से पहले, सैलरी स्लिप के सैम्पल पर एक नज़र डालते हैं:
*ऊपर दिया गया फॉर्मेट सिर्फ एक उदाहरण है और आपकी सैलरी स्लिप में उदाहरण में दिए गए कुछ घटक शामिल हो भी सकते हैं और नहीं भी।
यहां ये ध्यान देना ज़रूरी है कि विभिन्न कंपनियां सैलरी स्लिप का अलग- अलग फॉर्मेट उपयोग करती हैं। सैलरी स्लिप के लिए हर कंपनी जो बेसिक टैम्पलेट उपयोग करती है, वो नीचे दिया गया है:
- कंपनी का नाम, लोगो और पता, वर्तमान महीना और वर्ष
- कर्मचारी का नाम, कर्मचारी कोड, डेज़िग्नेशन, डिपार्टमेंट
- कर्मचारी पैन/आधार, बैंक अकाउंट नंबर
- ईपीएफ अकाउंट नंबर, यूएएन (यूनिवर्सल अकाउंट नंबर)
- कुल कार्य दिवस, प्रभावी कार्य दिवस, छुट्टियों की संख्या
- कमाई और कटौती की लिस्ट
- ग्रॉस पे और नेट पे
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सैलरी स्लिप का इनकम पार्ट
सैलरी स्टेटमेंट के इनकम/कमाई वाला हिस्सा बनने वाले घटक हैं:
1. बेसिक सैलरी
बेसिक सैलरी वह राशि है जो किसी कर्मचारी को अतिरिक्त जोड़े जाने या भुगतान में कटौती से पहले प्राप्त होती है। इसमें बोनस, ओवरटाइम पे या किसी प्रकार का मुआवजा शामिल नहीं है।
2. महंगाई भत्ता (DA)
महंगाई भत्ता (DA) कुछ कंपनियों/ नियोक्ताओं द्वारा अपने कर्मचारियों को दिया जाता है, जिससे उन्हें जीवनयापन की लागत में वृद्धि की भरपाई होती है। यह अलाउंस प्रदान करने के पीछे उनका उद्देश्य बढ़ती महंगाई के प्रभाव को कम करना है। यह आम तौर पर बेसिक सैलरी के एक फिक्स्ड पर्सेंटेज के रूप में भुगतान किया जाता है। आयकर अधिनियम के मुताबिक, प्राप्त किए गए डीए की पूरी राशि पर टैक्स लागू होता है और इसे आयकर रिटर्न फाइल करते समय बताना होता है।
3. हाउस रेंट अलाउंस (HRA)
एचआरए एक प्रकार का अलाउंस होता है जिसे कोई कंपनी/ नियोक्ता अपने कर्मचारी को प्रदान करती है। यह मूल रूप से व्यक्तियों को मकान के किराये के लिए दिया जाता है।
4. कन्वेयंस अलाउंस
घर से ऑफिस और ऑफिस से घर आने-जाने के लिए हर महीने 1,600 रु. (सालाना 19,200 रु.) प्रदान किए जाते हैं। इससे अधिक के किसी भी खर्च पर टैक्स लागू होता है।
5. मेडिकल अलाउंस
यह कंपनी/ नियोक्ता द्वारा प्रदान किया जाने वाला अलाउंस होता है जो कर्मचारी या उसके परिवार के किसी सदस्य के बीमार पड़ने पर उनके इलाज पर होने वाले खर्च के लिए दिया जाता है। यदि राशि 15,000 रुपये से अधिक होती है तो उस पर टैक्स लगता है।
6. स्पेशल अलाउंस
सेक्शन 14 (i) के तहत दी गई ड्यूटी पूरी करने पर कर्मचारी को स्पेशल अलाउंस का भुगतान किया जाता है। यह अलाउंस पर्क्विज़िट की कैटेगरी में नहीं आता है और इस पर आंशिक रूप से टैक्स लगता है।
सैलरी स्लिप में की जाने वाली कटौतियां
सैलरी स्टेटमेंट में जो डिडक्शन किए जाते हैं, वे निम्नलिखित हैं:
1. प्रोफेशनल टैक्स
किसी व्यक्ति को एक निश्चित पेशे की प्रैक्टिस करने देने के लिए राज्य सरकार द्वारा यह टैक्स वसूला जाता है। इस टैक्स के तहत हर साल अधिकतम 2,500 रु. की राशि का भुगतान करना होता है। यह राशि आपकी मासिक इनकम और उस राज्य पर भी निर्भर करती है जिसमें आप काम करते हैं। प्रोफेशनल टैक्स भारत के हर राज्य में लागू नहीं होता है और जिन राज्यों में लागू होता है, वहां अलग- अलग हो सकता है।
2. टीडीएस
टीडीएस या टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स, वो इनकम टैक्स होता है जो किराया, कमीशन, प्रोफेशनल फीस, सैलरी और ब्याज आदि प्रकार के भुगतान से काटा जाता है। यह भुगतान करने वाले व्यक्तियों द्वारा डिडक्ट किया जाता है और आमतौर पर, इनकम प्राप्त करने वाले व्यक्ति को इस इनकम टैक्स का भुगतान करना होता है।
3. एंप्लॉयी प्रोविडेंट फंड (ईपीएफ)
पीएफ योजना के तहत सभी नौकरीपेशा व्यक्तियों को उनके रिटायरमेंट के बाद मोनेटरी बेनिफिट प्रदान किए जाते हैं। जब आप नौकरी करना शुरू करते हैं, तो आपको और आपकी कंपनी/ फर्म दोनों को हर महीने बराबर राशि का योगदान करना होता है जो आपके मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 12% होता है।
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सैलरी स्लिप से आप इनकम टैक्स कैसे बचा सकते हैं
मासिक सैलरी स्लिप में कई घटक होते हैं, जैसे- हाउस रेंट अलाउंस (HRA), महंगाई भत्ता (DA), मेडिकल अलाउंस आदि जिससे कोई कर्मचारी हर वित्तीय वर्ष में इनकम टैक्स बचा सकता है। टैक्स अथॉरिटी किसी भी कंपनी/ संस्थान को अपने कर्मचारियों के सैलरी स्ट्रक्चर को इस तरीके का बनाने की अनुमति देती हैं जिससे उन्हें अपनी इनकम में शामिल कई अलाउंस के ज़रिए टैक्स बचाने में मदद मिलती है।
साथ ही, हर सैलरी स्लिप के फॉर्मेट में इनकम टैक्स शामिल होता है। यह वह टैक्स होता है जो कर्मचारी के टैक्स स्लैब के मुताबिक सभी कटौतियों के बाद अंतिम राशि पर लगाया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि आपकी मासिक आय सभी कटौतियों के बाद 50,000 रु. है, तो इस पर इनकम टैक्स लागू होगा। टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट्स जैसे लोन, पॉलिसी, एनपीएस, इक्विटी आदि में निवेश करके अधिक टैक्स बचाया जा सकता है।
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सैलरी स्लिप के टैक्सेबल/ आंशिक रूप से टैक्सेबल और नॉन- टैक्सेबल घटक
सैलरी स्लिप के सैम्पल डॉक्युमेंट में आपको कई हैड और सबहैड दिखाई देते होंगे। आपके लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि इनमें से कौन से घटक पर टैक्स लगता है और किस पर नहीं। आपकी पे स्लिप में दिए गए उन सभी घटकों के बारे में जानकारी नीचे दी गई है।
घटक | टैक्सेबल/आंशिक टैक्सेबल/नॉन-टैक्सेबल |
महंगाई भत्ता (DA) | टैक्सेबल |
बेसिक पे | टैक्सेबल |
हाउस रेंट अलाउंस (HRA) | आंशिक टैक्सेबल |
कन्वेयंस अलाउंस | आंशिक टैक्सेबल |
मेडिकल अलाउंस | आंशिक टैक्सेबल |
सिटी कॉम्पेन्सेटरी अलाउंस (CCA) | टैक्सेबल |
टिफिन/मील्स अलाउंस | टैक्सेबल |
परफॉर्मेंस/ स्पेशल अलाउंस | टैक्सेबल |
लीव ट्रैवल अलाउंस | आंशिक टैक्सेबल |
अन्य अलाउंस | टैक्सेबल |
विदेश रहने वाले सरकारी कर्मचारियों को सरकार द्वारा भुगतान किए जाने वाले अलाउंस | नॉन-टैक्सेबल |
Allowances paid to the judges of Supreme and High Court सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जज को भुगतान किए जाने वाले अलाउंस | नॉन-टैक्सेबल |
UNO द्वारा अपने कर्मचारियों को भुगतान किए जाने वाले अलाउंस | नॉन-टैक्सेबल |
UPSC के सदस्यों और रिटायर्ड चेयरमैन के लिए अलाउंस | नॉन-टैक्सेबल |
संबंधित प्रश्न (FAQs)
प्रश्न. एचआरए पर कौन से टैक्स बेनिफिट क्लेम किए जा सकते हैं?
उत्तर: कर्मचारियों को मिलने वाले एचआरए पर हमेशा पूरी तरह से टैक्स से छूट नहीं मिलती है। आपको HRA पर टैक्स में छूट कैसे मिलेगी, इसकी शर्तें निम्नलिखित हैं:
- नियोक्ता/ कंपनी से एचआरए के रूप में प्राप्त राशि पर टैक्स में छूट मिल सकती है
- मेट्रो शहरों में रहने वालों का किराया अगर उनकी बेसिक सैलरी का 50% तक होता है और नॉन-मेट्रो शहरों में रहने वालों का 40% तक होता है, तो उस पर टैक्स में छूट
- आपने अपनी वार्षिक बैसिक सैलरी के 10% से ज़्यादा जितना किराया भरा है उस पर।
प्रश्न. ESIC स्कीम क्या होती है?
उत्तर: यदि किसी कंपनी में 10 या उससे अधिक कर्मचारी हैं (महाराष्ट्र और चंडीगढ़ के मामले में 20) जिनकी ग्रॉस सैलरी हर महीने 21,000 से कम है, तो कंपनी/ नियोक्ता को ऐसे कर्मचारियों के लिए ईएसआईसी योजना का लाभ प्रदान करना ज़रूरी है। इसमें कंपनी/ नियोक्ता का योगदान ग्रॉस सैलरी का 4.75% होगा, जबकि कर्मचारी का योगदान ग्रॉस सैलरी का 1.75% होगा।
प्रश्न. प्रोफेशनल टैक्स क्या है?
उत्तर: प्रोफेशनल टैक्स राज्य सरकार द्वारा चार्टर्ड एकाउंटेंट, डॉक्टरों और वकीलों सहित नौकरीपेशा कर्मचारियों और पेशेवरों द्वारा अर्जित आय पर लगाया जाने वाला टैक्स होता है। प्रोफेशनल टैक्स को अलग- अलग राज्यों में अलग-अलग तरीके से कैलकुलेट किया जाता है। एक साल में अधिकतम 2,500 रु. के प्रोफेशनल टैक्स का भुगतान किया जाता है। कंपनी/ नियोक्ता कर्मचारियों को दी जाने वाली सैलरी से निर्धारित दरों पर प्रोफेशनल टैक्स काटते हैं और अपनी ओर से राज्य सरकार को इसका भुगतान करते हैं। इस टैक्स से जो रेवेन्यू आता है, उसका उपयोग सरकार रोजगार गारंटी योजना और रोजगार गारंटी कोष में करती है।
प्रश्न. मैं अपनी सैलरी स्लिप ऑनलाइन कैसे चेक कर सकती हूँ?
उत्तर: सैलरी स्लिप आमतौर पर HR द्वारा कर्मचारियों को ईमेल के ज़रिये दी जाती है। आपकी सैलरी स्लिप भी आपको कंपनी के HRMS पोर्टल पर मिल जाएगी।
प्रश्न. सैलरी स्लिप का फॉर्मेट क्या है?
उत्तर: इसमें कंपनी का नाम, सैलरी स्लिप महीना, नाम, पहचान संख्या, बैंक अकाउंट नंबर, बेसिक सैलरी, ग्रॉस सैलरी, भत्ते, एचआरए, रिइम्बर्समेंट, प्रोविडेंट फंड, टीडीएस, बोनस भुगतान समेत कर्मचारी की सैलरी संबंधी विस्तृत जानकारी शामिल होती है। साथ ही एक निर्धारित समय अवधि, आमतौर पर एक महीने में किए जाने वाले डिडक्शन भी शामिल होते हैं।
प्रश्न. क्या बैंक पे स्लिप चेक करते हैं?
उत्तर: अधिकांश बैंक/ लोन संस्थान आपकी हाल ही की दो पे स्लिप मांग सकते हैं जो छह सप्ताह से अधिक पुरानी नहीं होनी चाहिए। यदि आपको ओवरटाइम, बोनस, या कमीशन जैसी अन्य प्रकार की आय प्राप्त होती है तो आपको अतिरिक्त पे स्लिप, अपना टैक्स रिटर्न, या ग्रुप सर्टिफिकेट सबमिट करना पड़ सकता है।
प्रश्न. क्या हस्तलिखित पेस्लिप कानूनी हैं?
उत्तर: Payslips के संबंध में पहले से ही कानून मौजूद हैं, जैसे कि सैलरी स्लिप कर्मचारी को भुगतान किए जाने वाले दिन या उससे पहले ही प्रदान कर दी जानी चाहिए। हालांकि सैलरी स्लिप को कर्मचारियों को पेपर पर (यहां तक कि हस्तलिखित) या इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रदान किया जा सकता है।
प्रश्न. क्या कंपनियां पे स्लिप सबमिट करने को कहती हैं?
उत्तर: कंपनियां आपसे आपकी पिछली नौकरी की सैलरी के बारे में पूछती हैं जो कि आम बात है। ज़रूरी नहीं कि आप इसे साबित करने के लिए पे स्लिप प्रदान करें (बस आपके द्वारा दी गई जानकारी सही होनी चाहिए)।