इनकम टैक्स एक डायरेक्ट टैक्स है जिसे साल में एक बर भरा जाता है, ये हर व्यक्ति, हर कॉर्पोरेट कंपनी, हर स्थानीय प्राधिकरण या संगठन को कानूनी तौर से सरकार को भरना होता है, अगर वो किसी निश्चित मापदंड पर खरे उतरते हैं । किसी भी व्यक्ति या कंपनी को ये टैक्स अपनी आय या इनकम पर देना होता है अगर उस वित्त वर्ष (Financial year) में उसकी आय टैक्स के दायरे में आती है।
भारत में, ये टैक्स आय पर इनकम टैक्स दरों के मुताबिक, लागू किया जाता है। मतलब, कम आय पर टैक्स कम दर के हिसाब से होगा और ज्यादा आय पर उच्च टैक्स दर लगेगा। भारत में इनकम टैक्स साइकिल वर्तमान में 1 अप्रैल को वित्त वर्ष की शुरुआत के साथ शुरू आता है और अगले 31 मार्च को समाप्त होता है।
मुख्य पॉइंट:
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डायरेक्ट टैक्स क्या है और ये इन-डायरेक्ट टैक्स से कैसे अलग होता है?
टैक्स को विशेष रूप से दो प्रमुख हिस्सों में बांटा गया है – डायरेक्ट टैक्स और इन-डायरेक्ट। डायरेक्ट टैक्स आकलन द्वारा सीधे सरकार को दिया जाता है और इसका सबसे साधारण उदहारण है इनकम टैक्स और कॉर्पोरेशन टैक्स। इन-डायरेक्ट टैक्स की स्थिति में, आप खरीदारी या किसी तरह की सेवा लेने पर टैक्स का भुगतान करते हैं। उदहारण हैं, वैट (वैल्यू एडेड टैक्स) और जीएसट (गुड्स एंड सर्विस टैक्स)। भारत में, जहाँ इनकम टैक्स की अलग-अलग दरें हैं, वहीं इन-डायरेक्ट टैक्स अलग-अलग तरह की खरीदारी या सेवा के आधार पर लगाया जाता है।
इनकम टैक्स किसे भरना होता है?
आयकर अधिनियम के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति/व्यापार, जो कमाई कर रहा है फिर चाहे उसकी रकम कुछ भी क्यों ना हो, उसे इनकम टैक्स भरना ज़रूरी है। हालाँकि, वर्तमान में, आय पर टैक्स सिर्फ उन्हें ही भरना है, जिनकी सालाना कमाई 2.5 लाख रुपयों से ज्यादा है। ये निम्नलिखित प्रकार के व्यक्ति और संस्थाएं हैं, जो टैक्स का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं, बशर्ते कि वित्त वर्ष 2018-19 के लिए उनकी कुल कमाई इनकम टैक्स के दायरे में आती है:
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- नौकरीपेशा व्यक्ति
- स्वयं-रोज़गार व्यक्ति (अपना व्यवसाय करने वाला)
- हिंदू अविभाजित परिवार (HUF)
- कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त आर्टिफीशियल पर्सन
- बॉडी ऑफ़ इंडीविजुअल (बीओआई)
- व्यक्तियों का संघ (AOP)
- कंपनियों और कॉर्पोरेट फर्म
- स्थानीय अथॉरिटी
इनकम टैक्स दर क्या होती है?
भारत में कमाई पर टैक्स इनकम टैक्स दरों के मुताबिक, लगाया जाता है। ये दरें व्यक्ति की वार्षिक कमाई के अनुसार, होती हैं। ये इनकम टैक्स दरें व्यक्ति की वार्षिक कमाई के मुताबिक, बढ़ती-घटती हैं। ये दरें समय-समय पर बदल भी सकती हैं और इनका ऐलान यूनियन बजट घोषणा में किया जाता है। फाइनेंशियल वर्ष 2018-2019 और एसेसमेंट वर्ष 2019-2020 के मुताबिक, इनकम टैक्स दरें निम्नलिखित हैं:
प्रति व्यक्ति के लिए इनकम टैक्स दरें
टैक्स दायरा | सामान्य नागरिक | वरिष्ठ नागरिक (60 वर्ष और उससे ज्यादा लेकिन 80 वर्ष से कम उम्र वाले) | अत्यधिक वरिष्ठ नागरी (80 वर्ष से ज़्यादा उम्र वाले) |
₹ 2,50,000 तक | शून्य | शून्य | शून्य |
₹ 2,50, 001 से ₹ 3,00,000 तक | 5% | शून्य | शून्य |
₹ 3,00,001 से ₹ 5,00,000 तक | 5% | 5% | शून्य |
₹ 5,00,001 से ₹ 10,00,000 तक | 20% | 20% | 20% |
₹ 10,00,000 से ज़्यादा पर | 30% | 30% | 30% |
इस आय के लिए:
- 50 लाख रु. से 1 करोड़ के बीच: इनकम टैक्स पर 10% सरचार्ज भी लगाया जाएगा।
- 1 करोड़ रु. के ऊपर: इनकम टैक्स पर 15% सरचार्ज लगया जाएगा।
हर कर-दाता को इनकम टैक्स का 4% स्वास्थय और शिक्षा सेस के नाम पर भरना पड़ता है, फिर चाहे उस पर कोई भी टैक्स दर क्यों ना लगती हो!व्यवसाय के लिए इनकम टैक्स दरें.
व्यवसाय के लिए इनकम टैक्स दरें
सहकारी समितियों (co-operative societies) के लिए :
इनकम टैक्स दायरा | इनकम टैक्स दरें |
जब आय ₹ 10,000 के अन्दर हो | आय का 10% |
जब आय ₹ 10,000 से ₹ 20,000 के बीच हो | ₹ 10,000 से ज़्यादा की राकम पर 20% |
जब आय ₹ 20,000 से ज़्यादा हो | ₹ 20,000 से ज़्यादा की रकम पर 30% |
फर्म और डोमेस्टिक कंपनियों के लिए :
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- डोमेस्टिक कंपनियां, स्थानीय संगठन, और फर्म पर स्लैब दर लागू नहीं होते ।
- उनकी कुल आय पर सीधे 30% टैक्स लगाया जाता है।.
- डोमेस्टिक कंपनियों की कुल आय 1 करोड़ रु. से ज़्यादा होती है तो 7% सरचार्ज लगाया जाता है।
- घरेलु कंपनियों की कुल आय 10 करोड़ रु. से ज़्यादा होती है तो 12% सरचार्ज लगाया जाता है।
- ऐसी संस्थाओं पर सरचार्ज के अलावा टैक्स के रूप में से 3% टैक्स भी लगाया जाता है।
रिटर्न भरना अनिवार्य है
- टैक्स से जुड़ी किसी भी प्रकिर्या की ज़िम्मेदारी आयकर विभाग की है।
- फाइनेंशियल वर्ष के अंत में, हर कर-दाता को अपनी कमाई आयकर विभाग के सामने, सरकार द्वारा जारित फार्म में घोषित करनी होती है।
- हर व्यक्ति और संस्था, जो भारत में आय कमा रहा है, TDS भरने के बावजूद, उसके लिए रिटर्न भरना अनिवार्य है।
- ये ITR (इनकम टैक्स रिटर्न फॉर्म ) में एक विशेष वित्तीय वर्ष में कमाई गयी आय को सामने रखा जाता है।
- कमाई व्यवसाय, वेतन, पेंशन, आवास संपत्ति से आय या पूंजीगत लाभ से भी हो सकती है।
जुर्माने से बचें
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- ITR (इनकम टैक्स रिटर्न फॉर्म) भर के आप सरकार को अपनी आय और उस पर भरे टैक्स के बारे में बताते हैं।.
- जब आप इनकम टैक्स रिटर्न भरते हैं, तो वो आपकी कमाई का सबूत होता है जिस पर आपने टैक्स भरा है।
- आयकर अधिनियम के अनुसार, हर साल ITR भरना अनिवार्य है।
- ITR ना भरने से गंभीर मुसीबत हो सकती है। आयकर विभाग आपको टैक्स डिफ़ॉल्टर मान सकता है।
- इनकम टैक्स विभाग आप पर जुर्माना लगा सकता है।
- अगर आपने ज़रूरत से ज्यादा टैक्स भर दिया है, तो आपको अतिरिक्त रकम वापस मिल जाएगी।
किस तरह की कमाई पर टैक्स लगता है?
आयकर अधिनियम 1961 के मौजूदा नियमों के अनुसार, निम्न प्रकार की आय पर लागू दरों के अनुसार टैक्स लगता है:
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- वेतन से आय
- पूंजीगत लाभ से आय
- आवास संपत्ति से आय
- व्यापार से आय
- अन्य आय जैसे लॉटरी और अन्य कानूनी जुआ, लाभांश आय, आदि.
इनकम टैक्स रिटर्न भरने के लाभ
जिस भी व्यक्ति की आय इनकम टैक्स के दायरे में आती है उसे इनकम टैक्स रिटर्न भरना चाहिए। अगर आपकी उम्र 60 वर्ष से कम है और आपकी आय 2.5 लाख रु. तक है, तो आपको इनकम टैक्स भरने की आवश्यकता नहीं है। ऐसा देखा गया है कि कई नौकरीपेशा व्यक्ति ये सोचते हैं कि उनकि सैलरी से TDS काट लिया गया है इसलिए उनकी ज़िम्मेदारी खत्म हो गयी। इनकम टैक्स रिटर्न भरना और इनकम टैक्स जमा करना, ये दोनों अलग काम हैं। अगर आप टैक्स के दायरे में नहीं आते हैं, तब भी आपको आयकर रिटर्न भरना चाहिए। आयकर रिटर्न भरने के कई लाभ होते हैं:
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- लोन लेने में आसानी होती है.
- वीसा लगवाने के लिए रिटर्न भरना अनिवार्य है.
- अचल संपत्तियों का तुरंत रजिस्ट्रेशन संभव है.
- जब तक कोई आवेदक अपना रिटर्न नियमित रूप से नहीं भरता, बैंक उसे क्रेडिट कार्ड नहीं देता.
- इनकम टैक्स रिटर्न जमा करने से आयकर विभाग के साथ एक रिकॉर्ड स्थापित करने में मदद मिलती है.
इनकम टैक्स रिटर्न जमा करना
आयकर अधिनियम के अनुसार, इनकम टैक्स रिटर्न जमा करना अनिवार्य है, अगर:
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- एक फाइनेंशियल वर्ष में आपकी कुल आय 2.5 लाख रु. से ज्यादा है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए ये सीमा 3 लाख रु. तक होती हैऔर अगर किसी की उम्र 80 वर्ष से ज़्यादा है, तो ये सीमा 5 लाख रु. तक हो जाती है।
- आप कोई कंपनी है, फिर भले ही आप मुनाफे में हो या घाटे में।
- आप इनकम टैक्स रिफंड क्लेम करने जा रहे हैं।
- आप भारतीय नागरिक हैं और भारत के बाहर आपके पास संपत्ति है तो इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करना आपके लिए अनिवार्य है ।
- यदि आप किसी संपत्ति से आय प्राप्त करते हैं जो किसी धार्मिक या दान उद्देश्यों के लिए कार्य करती है, किसी शोध संघ, किसी राजनितिक दल, किसी शैक्षणिक संस्थान, किसी समाचार एजेंसी, के लिए किसी ट्रस्ट के तहत हो।
- अप्रवासी भारतीय (NRI) होने की स्तिथि में, यदि आप भारत में आय कमा रहे हैं तो उस पर टैक्स लगेगा।
ई-फाइलिंग इनकम टैक्स
- वर्ष 2006- 2007 में पहली बार आयकर विभाग द्वारा ई-फाइलिंग सुविधा शुरू की गयी थी।
- ई-फाइलिंग के लाभ सभी करदाताओं के लिए हैं।
- ई-फाइलिंग उन उन फर्म और कंपनियों के लिए अनिवार्य है जिनका धरा 44AB के तहत ऑडिट हो सकता है।
- वर्तमान में, बड़ी संख्या में करदाता इनकम टैक्स रिटर्न ई-फाइलिंग जमा कर रहे हैं।
- आयकर विभाग इस उम्मीद में है कि सभी इनकम टैक्स रिटर्न ऑनलाइन जमा हों।
- आप अपना आयकर रिटर्न यहाँ ई-फाइल कर सकते है: https://www.incometax.gov.in/iec/foportal/
- ई-फाइलिंग रिटर्न के कई फायदे हैं, जैसे आपको कागज़ी काम नहीं करना पड़ता, उन्हें सुधारने में अपना समय बर्बाद नहीं करना पड़ता।
- एक बटन दबाकर, आप एक सुरक्षित वेबसाइट पर लॉग-इन कर के अपना इनकम टैक्स रिटर्न भर सकते हैं।
इनकम टैक्स जमा करने से पहले आपको इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि इनकम टैक्स की गणना कैसे होती है। इससे आपको सिर्फ इसी बात का अंदाज़ा नहीं लगेगा कि आपको कितना इनकम टैक्स भरना है, बल्कि ये भी पता चलेगा कि आप अपना टैक्स कैसे बचा सकते हैं। अगर आपको इनकम टैक्स स्लैब की जानकारी है, तो आपके इनकम टैक्स की गणना करना आसान है। इनकम टैक्स की राशि, उन टैक्स दरों की गणना कर के निकाली जाती है, जो वर्तमान में मौजूद हों, फिर उनमें से TDS (टैक्स डिडक्शन एट सोर्स) के द्वारा भरे जा चुके टैक्स को घटा दिया जाता है, उसके बाद जो राशि बची, वो भरनी होती है।
अपने टैक्स की अधिकतर राशि बचाने के लिए, ज़रूरी है कि आप जान लें कि आपको आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कितनी टैक्स छूट मिली है। कुछ निवेश करने पर, जैसे राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र और पब्लिक प्रोविडेंट फण्ड आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 80C के तहत टैक्स छूट मिलती हैं। हालांकि, कई करदाता इनकम टैक्स भरते समय उन निवेशों का ज़िक्र करना भूल जाते हैं जिन पर टैक्स छूट मिलती है। आयकर अधिनियम की धारा 80C के तहत, जिन निवेश पर टैक्स छूट मिलती है वो निम्नलिखित हैं:
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- टैक्स सेविंग म्यूचुअल फण्ड
- टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉज़िट
- राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र
- होम लोन चुकाने पर
- जीवन बीमा पॉलिसी प्रीमियम भरने पर
- इक्विटी ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड
- कर्मचारी भविष्य निधि में योगदान
- धारा 80C के तहत टैक्स छूट की सीमा, 5 लाख रु. है
विभिन्न धाराओं के तहत टैक्स छूट की अनुमति
एक करदाता आयकर अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत टैक्स छूट की मांग कर सकता है। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :
- धारा 80CCC के तहत, LIC जैसी वार्षिक योजनाओं में योगदान पर 1.5 लाख रु. तक टैक्स छूट मिल सकती है।
- धारा 80TTA के तहत, बैंक सेविंग अकाउंट पर मिले ब्याज़ पर टैक्स नहीं लगता है।
- धारा 80CCG के तहत, राजीव गाँधी बचत योजना में निवेश पर टैक्स छूट मिलती है।
- धारा 80D के तहत, अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी, बच्चों या खुद के लिए, मेडिकल इंश्योरेंस के प्रीमियम का भुगतान करता है, तो वो इनकम टैक्स भरते समय 25000 रु. तक की टैक्स छूट की मांग कर सकता है। वरिष्ट नागरिकों के लिए ये सीमा 30,000 रु. तक लागू की गयी है। इसके अतिरिक्त, हर परिवार को एक साल में मेडिकल जांच कराने पर 5,000 रु. तक की टैक्स छूट मिल सकती है।
- धारा 80DD के तहत, यदि किसी करदाता का पारिवारिक सदस्य 40% अपंग है और आप उसके इलाज के लिए खर्च कर रहे हैं, तो आप 75,000 रु. की टैक्स छूट के लिए दावा कर सकते हैं।
- धारा 80DD के तहत, यदि कोई व्यक्ति किसी बिमारी के इलाज के खर्च कर रहा है जैसे कैंसर, न्यूरोलॉजीकल बीमारियाँ, AIDS आदि तो उसे 40,000 रु. की टैक्स छूट मिल सकती है।
- यदि आपने शिक्षा लोन लिया है और उसका ब्याज़ भर रहे हैं, तो धारा 80E के तहत, आपको टैक्स छूट मिल सकती है। हालांकि, अगर आप शिक्षा लोन की सूद रकम भर रहे हैं, तो आप इसके लिए योग्य नहीं हैं।
- धारा 80G, 80GGए, 80GGB, 80GGC, के तहत, अगर किसी व्यक्ति ने चंदा दिया है तो वो टैक्स छूट के लिए दावा कर सकता है।
- 2019 के बजट में नौकरीपेशा लोगों को मेडिकल और ट्रांसपोर्ट खर्च के लिए 40,000 रु. की टैक्स छूट मिल सकती है। इस छूट के लिए असली बिल जमा करने की ज़रूरत भी नहीं है।
इनकम टैक्स रिबेट
इनकम टैक्स एक्सेम्प्शन, इनकम टैक्स रिबेट और इनकम टैक्स डिडक्शन में के बीच अंतर को नहीं समझ पाते। भले ही ये सभी शब्द करदाता के लाभ से संबंधित हैं लेकिन इन अर्थ अलग-अलग है।
- इनकम टैक्स रिबेट एक तरह का रिफंड है जो आपको आयकर अधिनियम की धारा 87A के तहत इनकम टैक्स रिफंड (ITR) फाइल करने पर मिलता है।
- अगर आप इनकम टैक्स भरते समय टैक्स छूट के लिए निवेश/खर्च के दस्तावेज देना भूल जाते हैं और सरकार आपका इनकम टैक्स काट लेती है तो आप ITR फाइल करते समय उन निवेश/खर्च के दस्तावेज देकर काटे गए इनकम टैक्स की वापसी की मांग कर सकते हैं।
- वो ही व्यक्ति रिबेट के लिए योग्य है जो भारतीय निवेसी हो, उम्र 80 वर्ष से कम हो और जिसकी वार्षिक आय 5 लाख रु. या कम हो।
- हिन्दू अनडिवाइडेड फैमिली, कंपनी, ट्रस्ट, LLP, पार्टनरशिप फर्म और अनिवासी भारतीय (NRI) टैक्स रिबेट के लिए योग्य नहीं हैं।
टैक्स डिडक्शन और एक्सेम्प्शन के बीच अंतर
- टैक्स एक्सेम्प्शन और टैक्स डिडक्शन, दोनों में टैक्स से राहत ही है, जो सरकार ने कर दाताओं को दी हुई है।
- टैक्स एक्सेम्प्शन का मतलब उस आय से है जिस पर सरकार टैक्स नहीं लगाती है। जैसे, 2.5 लाख रु. से कम की वार्षिक कमाई पर टैक्स ना देना।
- वहीं टैक्स डिडक्शन की बात करें तो व्यक्ति की कुल आय से उन निवेश और खर्च को घटा दिया जाता है जिस पर सरकार टैक्स छूट देती है और उसके बाद बची आय पर टैक्स लगाया जाता है।
नौकरीपेशा व्यक्तियों के लिए टैक्स छूट के लाभ
आयकर अधिनियम के अनुसार, नौकरीपेशा व्यक्ति कई प्रकार की टैक्स छूट के योग्य हैं। नौकरीपेशा व्यक्तियों को अपने नियोक्ता/कंपनी को ये बताना होगा कि वो इस छूट के लिए क्लेम कर रहे हैं। ताकि TDS काटते समय नियोक्ता/कंपनी उनकी बची हुई आय पर ही टैक्स लगाएं। टैक्स छूट की जानकारी इस प्रकार है:
- बहुत से नियोक्ता/कंपनी अपने कर्मचारियों को मकान किराया भत्ता (HRA) देते हैं। आयकर अधिनियम के तहत, इस HRA का एक हिस्सा टैक्स से मुक्त होता है।
- कुछ नियोक्ता/कंपनी अपने कर्मचारियों को विशेष भत्ता भी देते हैं । इस रकम का कुछ हिस्सा भी टैक्स से मुक्त होता है, बशर्ते, वो छुट्टियां भारत के अन्दर ही मनाई गयी हों।
- बहुत सी स्तिथियों में, जब कोई कर्मचारी किसी संगठन में नौकरी करता है, तो वो कुछ छुट्टियों के योग्य होता है। अगर वो ये छुट्टियां ना ले, तो उसके बदले उसे पैसे दिए जाते हैं। छुट्टियों के मुआवजे में दी गयी रकम पर भी टैक्स छूट की मांग की जा सकती है।
- कुछ हद तक पेंशन से हुई कमाई पर भी टैक्स छूट दी जाती है।
- कभी-कभी, कुछ कर्मचारी अपनी रिटायर्मेंट की उम्र से पहले ही रिटायर्मेंट ले लेते हैं। ऐसी स्तिथि में, नियोक्ता/कंपनी कर्मचारी को एक रकम देते हैं। इस रकम पर टैक्स नहीं लगता मिलती है।
- कुछ दुसरे भत्ते जैसे बच्चों की शिक्षा भत्ता और परिवहन भत्ते पर भी टैक्स की माफ़ी होती है लेकिन सिर्फ कुछ हद तक।
टैक्स योजना
- करदाता होने के नाते, आपको टैक्स संबंधित जानकारी होनी चाहिए ताकि आप कम से कम टैक्स भरें।
- टैक्स योजना एक ऐसा तरीका है जिससे आप पर टैक्स छूट, माफ़ी, और रिबेट का कानूनी हद में रहते हुए, पूरा फायदा उठा सकें।
- बहुत ज़रूरी है कि आप उन भागों पर ध्यान दें, जहां आप सबसे ज्यादा बचत कर सकते हैं।
- बहुत समय से, बीमा योजनाओं को टैक्स बचाने का सबसे अच्छा तरीका माना जा रहा है।
- नौकरीपेशा व्यक्ति जिनकी उम्र 23 से 30 साल के बीच है, उनके लिए सबसे अच्छा तरीका है जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा ।
- क्योंकि ये उनके जीवन की शुरुआत है, इसलिए भविष्य की बचत करने के लिए ये सब से सही वक़्त है ।
- टैक्स योजना के लिए, सबसे अच्छा है कि आप किसी टैक्स सलाहकार से बात करें।
टैक्स सलाहकार की मदद के बिना टैक्स योजना
- टैक्स योजना का प्रमुख मकसद होना चाहिए कम टैक्स देना।
- हर करदाता की इच्छा होती है कि वो अपनी कमाई का अधिकतर हिस्सा अपने पास रखे ।
- यदि आप टैक्स योजना खुद बनाते हैं, तो वो आपके लिए चुनौती भरा भी हो सकता है लेकिन उसका लाभ भी होगा।
- आपके पास ये फायदा होता है कि आप अपनी ज़रूरत के हिसाब से टैक्स बचत योजना का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- साथ ही, ये चुनौती भरा भी हो सकता है क्योंकि अगर आपका फैसला गलत हो गया तो समझिये, आप एक अनुचित निवेश के साथ कम से कम 3 से 5 साल के लिए अटक गए।
टैक्स चोरी से बचें
भारत की मुख्य दिक्कतों से एक ये है कि यहाँ कर दाताओं की संख्या बहुत कम है, इसका मतलब यहाँ टैक्स की चोरी बहुत बड़े पैमाने पर होती है। टैक्स चोरी एक गैरकानूनी क्रिया है, जिसमें लोग या तो अपना इनकम टैक्स रिटर्न फाइल नहीं करते या फिर अपनी वार्षिक कमाई छुपाते या कम बताते हैं।
यदि आयकर अधिकारीयों ने बारीकी से जांच की और उन्हें ये पता चला कि आपने जानबूझकर टैक्स चोरी की है, तो आपको हर्जाना देना होगा। आपने जितनी रकम छुपाई है जुर्माना उसका तीन गुना हो सकता है। इसलिए सबसे बेहतर है कि आप बेहद सावधानी से आयकर रिटर्न फाइल करें क्योंकि यदि अवैधता के लिए बारीकी से जांच हुई तो आपको गंभीर जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है ।
संबंधित सवाल
प्रश्न. TDS और इनकम टैक्स में क्या फर्क होता है?
उत्तर: TDS, वो तरीका है जहां प्राप्तकर्ता को रकम मिलने से पहले ही उसका टैक्स काट लिया जाता है। जहाँ TDS आमतौर पर सैलरी के भुगतान से जुड़ा होता है, वहीँ कई अलग तरह की आय पर भी ये लागू होता है, जैसे लाटरी से मिली रकम, कानूनी जुए में जीते पैसे, मकान का किराया, स्वछन्द काम, संपत्ति की बिक्री, आदि। इसलिए TDS कर इकठ्ठा करने की कार्यविधि है, जब कि इनकम टैक्स का मतलब है वो टैक्स, जो एक व्यक्ति की वार्षिक कमाई पर लगता है।
प्रश्न. प्रोफेशनल टैक्स और आयकर में क्या अंतर है?
उत्तर: प्रोफेशनल टैक्स राज्य स्तर का टैक्स है, जो व्यक्ति की उस आय पर लागू है जो उसने किसी विशेष राज्य में कमाई हो। इस वक़्त, प्रोफेशनल टैक्स सिर्फ उन लोगों पर लागू है, जो उन ख़ास राज्यों में रह रहे हैं जो प्रोफेशनल टैक्स लेते हैं और प्रोफेशनल टैक्स का दर और उसकी छूट की सीमा हर राज्य में अलग होती है। जबकि, इनकम टैक्स केन्द्रीय टैक्स है, जो लोग सीधे केन्द्रीय सरकार को देते हैं और इसका दर पूरे भारत में एक ही होता है। ये भी बता दें, कि अगर आपने प्रोफेशनल टैक्स दिया है इनकम टैक्स जमा करते वो रकम टैक्स छूट के रूप में काट ली जाएगी।
प्रश्न. इनकम टैक्स और इनकम टैक्स रिटर्न में क्या अंतर है?
उत्तर: इनकम टैक्स वो टैक्स है, जो एक व्यक्ति/फर्म/कंपनी की आय पर वित्तीय वर्ष में लागू किया जाता है। व्यक्ति की इनकम टैक्स की गणना मौजूदा इनकम टैक्स स्लैब रेट और टैक्स छूट, कर आदि, को ध्यान में रख कर की जाती है। जबकि, इनकम टैक्स रिटर्न इस बात का रिकॉर्ड है कि फाइनेंशियल वर्ष में आपने कितनी कमाई की, आप पर कितना टैक्स बना और कितना आपने जमा किया। ये रिकॉर्ड लागू आयकर विभाग को जमा किया जाता है, जिसे इनकम टैक्स रिटर्न फॉर्म कहते हैं। इनकम टैक्स रिटर्न फॉर्म को जमा करने की इस क्रिया को इनकम टैक्स रिटर्न फाइल कहते हैं। इसका मतलब, इनकम टैक्स वो टैक्स होता है, जो आय पर लागू होता है और आयकर रिटर्न वो सालाना रिकॉर्ड होता है, जिसमे आय और टैक्स की विस्तृत जानकारी होती है।
प्रश्न. टैक्स और ड्यूटी में क्या अंतर है?
उत्तर: टैक्स वो भुगतान होता है , जो एक व्यक्ति या संगठन को अपनी कमाई के आधार पर देना होता है। इनकम पर लागू टैक्स इनकम टैक्स कहलाता है, ये एक डायरेक्ट टैक्स है। जबकि खर्च पर लागू टैक्स इन-डायरेक्ट टैक्स होता है। ड्यूटी भी एक तरह का टैक्स होती है, जो सिर्फ आयात और निर्यात पर लागू होती है। जब ये ड्यूटी किसी आयातक देश पर लगती है तो इसे आयात शुल्क कहते हैं और जब ये किसी निर्यातक देश पर लगती है, तो इसे निर्यात शुल्क कहते हैं।